DIRECTIONAL RELAY

Published by ASHA CHAUHAN on

  डायरेक्शनल रिले ( Directional Relay )

 

जब करंट की दिशा उल्टी हो तब रिले ऑपरेट होता है और जब F फॉल्ट एक दिशा में  हो और करंट बढ़ता हो तो भी रिले ऑपरेट नहीं होता  परंतु करंट की दिशा रिवर्स हो तब रिले ऑपरेट होता है पैरेलल फीडर प्रोटेक्शन के लिए रिले का उपयोग किया जाता है 

DIRECTIONAL REALAY
FIG. 1
NON-DIRECTIONAL REALAY
FIG. 2

फिगर में बताया अनुसार  दो समांतर फीडर दिए गए हैं जिसमें A1, A2  और B1, B2  दर्शाया गया है यदि रिले नॉन-डायरेक्शनल प्रकार में रखा जाता  हो [  रिले को ( ⟷ ) के द्वारा दर्शाया जाता है ]

 

यदि A1 और A2  एस के पास  F फॉल्ट होता हो तो  तो उसके पास A1 रिले ऑपरेट हो जाता है जो बराबर है परंतु साथ ही साथ  B1 अथवा B2 के पास का रिले ऑपरेट होता है अर्थात फीडर जब नॉरमल कंडीशन में  हो तब B1, B2 डिस्कनेक्ट हो  जाता है

 

क्योंकि फॉल्ट करंट B1, B2, A2 के रास्ते से भी  फीड होता है  इस प्रकार के निवारण के लिए आकृति में बताए अनुसार A2और B2 के पास में लगा हुआ डायरेक्शनल रिले  की प्रॉपर्टी रखी जाती है

 

अब जब A1, A2  फीड में F फॉल्ट होता  हो तब A1 और A2  के पास  का रीले ऑपरेट होता है परंतु B2 के पास  का रीले ऑपरेट नहीं होता कारण की B2 के पास   का रीले डायरेक्शनल प्रकार का रिले होता है  और  फीडर B1, B2 के द्वारा  फॉल्ट  होने  पर करंट का रीले ऑपरेशन की दिशा में नहीं होता

 

A2 और B2  के रिले का ऑपरेशन का समय  A1 और B1  किले ऑपरेशन का समय से कम रखा जाता है 

डीसी  रिले में POLERIZED प्रकार के रिले का उपयोग करते हैं।  इंडक्शन प्रकार A.C.  रिले में DIRECTIONAL FEATURE प्रदान करने के लिए रिले दो अलग-अलग स्रोतों से ENERGIZED किया जाता  है। एक कॉइल एक वोल्टेज स्रोत से और दूसरा एक मौजूदा स्रोत से सक्रिय होता है।  रिले दोनों के  बीच KA PHASE  ANGLE  का पता लगाता है और यदि PHASE ANGAL एक निश्चित सीमा से अधिक हो जाता है तो रिले OPERATE होता है।

DIRECTIONAL  रिले में निम्नलिखित विशेषताएं होनी चाहिए:

 
 
[1]  स्पीड [ गति, तेज़ ] 
 
[2] सेंसिटिविटी 
 
[3] मिनिमम बर्डन 
 
[4] शार्ट टाइम थर्मल रेटिंग
 
[5] मिनिमम वोल्टेज पर कोइल को ऑपरेट होने की क्षमता 

[6] एक ही वोल्टेज कोइल या एक ही करंट कोइल ENERGIZED 

 

हो तो रिले ऑपरेट नहीं होना चाहिए

 

डायरेक्शनल ओवर करेंट रिले

 

इस प्रकार के रिले में डायरेक्शनल और ओवरकरेंट दोनों प्रकार का समावेश किया जाता है दोनों प्रकार के एलिमेंट एक ही प्रकार के केस में रखा जाता है

 

इसमें डायरेक्शनल यूनिट के कांटेक्ट ओवर करेंट रिले   का फ्लेक्स पैदा करते समय सर्किट को सीरीज में रखा जाता है क्योंकि करंट की दिशा विरुद्ध ना हो और करंट की वैल्यू जितनी चाहे उतनी बढ़े फिर भी और करंट यूनिट ऑपरेट ना हो सके 

 

यदि इस प्रकार डायरेक्शनल रिवर्स होता  है  और  ओवर करंट होता है जिससे रीले ऑपरेट होता है

और ट्रिप कोइल ENERGIZED होता है

 

ऊपर बताए गए अनुसार यदि दोनों यूनिट के कांटेक्ट  सीरीज में जोड़े जाते हैं वह तो इस प्रकार से यह कार्य नहीं करेगा क्योंकि डेड शार्ट सर्किट के कारण ओवर करंट यूनिट ऑपरेट होता है और दूसरी कोई सर्किट ब्रेकर  ट्रिप होने के कारण डायरेक्शनल यूनिट में पावर फ्लो रिवर्स होता है

 

जिससे उसके कांटेक्ट क्लोज हो जाते हैं और कोईल ENERGIZED होता है  इस तरह हम से यह गलत ऑपरेशन होता है

डायरेक्शनल पावर रिले और डायरेक्शन ओवरकरेंट रिले के बीच का अंतर

डायरेक्शनल पावर रिले ( Directional Relay ) और डायरेक्शन ओवर करेंट रिले Directional Relay दोनों डायरेक्शन प्रकार की रिले हैं

 

परंतु दोनों के बीच में अंतर डायरेक्शनल पावर रिले और रिवर्स पावर रिले में इंडक्शन रिले एक ही एलाइनमेंट में होता है और उसकी एक कोईल वोल्टेज सोर्स में से तथा दूसरी कोइल करंट सोर्स में से ENERGIZED होती है

 

जब पावर फ्लो की दिशा विरुद्ध होती है तब यह रिले ऑपरेट होता है  यह रिवर्स पावर की वैल्यू पर आधारित नहीं होता

 

डायरेक्शनल ओवर करेंट रिले मे 2 एलाइनमेंट होते हैं   इस रिले को ऑपरेट करने के लिए दो प्रकार की स्थिति का निर्माण होना जरूरी होता है एक तो करंट रिवर्स दिशा में करंट की वैल्यू सेट वैल्यू उससे अधिक होनी चाहिए 

 

यदि करंट की दिशा रिवर्स ना हो तो और मात्र उसकी वैल्यू ही बढ़ती रहे तो यह रिले ऑपरेट नहीं हो सकता और यदि उसी में मात्र करंट की  दिशा रिवर्स हो जाए तो और करंट की कीमत ज्यादा प्रमाण में  नहीं बढ़  रही हो तो भी  रिले ऑपरेट नहीं होगा 



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